कांग्रेस की एकला चलो राजनीति फेल, मोदी-शाह की जोड़ी को कम आंकना पड़ा भारी...
नई दिल्ली: 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में मतदाताओं ने प्रचंड बहुमत के साथ देश की बागडोर फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंप दी। भाजपा ने इस बार 2014 से भी बड़ी और ऐतिहासिक जीत दर्ज की। पहली ऐसी गैर-कांग्रेसी पार्टी जिसने लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की। 10 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में क्लीन स्वीप... अकेले दम पर 303 से अधिक सीटें... ये ऐतिहासिक कामयाबी सिर्फ पीएम मोदी के नाम पर। भाजपा के राष्ट्रवाद की लहर पर सवार मतदाताओं ने जातिवाद, परिवारवाद और तुष्टीकरण की राजनीति को ध्वस्त कर दिया।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेसकी लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बुरी हार, ऐसी कि नेता प्रतिपक्ष के लिए फिर एक बार जरूरी आंकड़ा तक नहीं जुटा सकी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में यह हार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी (1989) के नेतृत्व में शिकस्त से भी बुरी रही। करीब 5 माह पहले कांग्रेस जिन तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को हराकर सत्ता में लौटी थी, वहां भी उसे करारी हार झेलनी पड़ी। खुद राहुल गांधी पुश्तैनी सीट अमेठी से चुनाव हार गए। अमेठी से हारने वाले वह गांधी परिवार के पहले सदस्य हैं।
कांग्रेस के नौ पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कई दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा। दिल्ली की सत्ता के सबसे बड़े द्वार यूपी में भी भाजपा ने सधी रणनीति से सपा-बसपा-गठबंधन की चुनौती को ध्वस्त कर दिया। यह और बात है कि उसकी सीटें कुछ कम हो गईं। भाजपा ने 12 प्रमुख और बड़े राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने के साथ ही पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बीते चुनाव की सफलता से भी बड़ी लकीर खींच दी। वहीं, यूपी में सहयोगी अपना दल के साथ मिलकर भी इसने 50 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया।
कांग्रेस की एकला चलो की रणनीति चारों खाने चित हो गई। कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता मानी जाने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा के जरिए यूपी में जीत का भरोसे से अतिउत्साहित कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है। 21 राज्यों में कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई है। मोदी-शाह की जोड़ी को हलके में लेना करीब 135 वर्ष पुरानी पार्टी को बेहद भारी पड़ा है। एक बार फिर कांग्रेस के समक्ष लोकसभा में विपक्षी पार्टी का दर्जा मिलना मुश्किल हो गया है। कांग्रेस की सामने आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति हो गई है।
इस चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखकर कहा जा सकता है कि वह वोटकटवा पार्टी बन गई है। बीच चुनाव में प्रियंका का वोटकटवा वाला बयान भी अब यही साबित कर रहा है। रोड शो और सभाओं में प्रियंका के लिए भीड़ तो जुटती थी लेकिन वह वोट में तब्दील नहीं हो सकी। वह यूपी में भी खूब घूमीं और दूसरे राज्यों में भी गईं लेकिन जिन 44 लोकसभा सीटों पर उन्होंने भीड़ जुटाई, उनमें से छह सीटें ही वोट में बदलती दिखीं।