13 अप्रैल 2019 को जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी है…
नई दिल्ली: 100 वर्ष पहले-13 अप्रैल 1919 के दिन, जब पंजाब में वैशाखी का, हर्षोल्लास का वातावरण होता, लेकिन पंजाब में तब रोलैट एक्ट लगा था कथित अराजकता के विरुद्ध ऐसा कानून जिसमें- न वकील, न दलील, न अपील, किसी को भी थाने में बिना किसी कारण ठूंसने की पुलिस को आजादी थी, और जमानत का तो सवाल ही नहीं था, पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया था, किसी को भी पकड़ कर चौराहे पर उसके कपड़े उतारकर टिकटिकी से बांधकर बेरहमी से कोड़े बरसाये जाते थे|
पंजाब के गुजरांवाला में देश की जनता पर हवाई हमला किया गया, जब पूरे पंजाब में ऐसे अत्याचारों का दौर था, तब गांधी जी ने दिल्ली और पंजाब आने के लिए यात्रा की, लेकिन उन्हें पलवल पर रोककर वापस बॉम्बे प्रॉविन्स भेज दिया गया।
पंजाब के अमृतसर में भी, रोलैट एक्ट के विरोध के लिए न कोई जुलूस निकाल सकते थे, न कोई सभा कर सकते थे, तब उस दिन प्रातः जब शहर के किन्हीं एक-दो चौराहों पर इसकी घोषणा की गई। तब उसे सभी लोग सुन नहीं सके, वैशाखी के उत्साह में, कई लोग आसपास के गांव से आये हुए थे। 3-4 दिन पहले एक गली में, यह आरोप लगा कि मिस शेरवुड का अपमान किया गया। इस अंग्रेज महिला के कथित अपमान की, लोगों को ऐसी सजा दी गई कि गली से निकलने वाले प्रत्येक जन को रेंगकर गली में से निकलने को कहा गया। इसे नाम दिया गया-क्रोलिंग और फिर फ्रेलिंग।
100 वर्ष पहले 9 अप्रैल को रामनवमी थी, 10 अप्रैल 1919 को रोलैट एक्ट के विरोध के कारण, अमृतसर के जन नेता डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार करके धर्मशाला भेज दिया गया। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में, जिसमें प्रवेश का एक संकरा रास्ता था| अंदर एक मैदान था, जिसमें चारों ओर ऊंचे मकानों की दीवारें थीं, मैदान के कोने में एक कुंआ था, यहां शाम के समय 20 हजार लोगों जमा थे, जो शांतिपूर्ण तरीके से रोलैट एक्ट का विरोध करने और दोनों जन नेताओं की रिहाई की मांग करने के लिए एकत्र हुए थे।
ऐसे में जनरल रेगीनैल्ड डायर ने, अपने 90 सैनिकों के साथ वहां प्रवेश किया, बिना कोई चेतावनी दिये, बिना भीड़ को बिखरने का समय दिये, उसने गीली चलाने का निर्देश दे दिया, गोलियां चलने से चीख पुकार मच गई, बच्चे, बूढ़े, जवान सभी मर-मरकर गिरने लगे, भागने से भी जान नहीं बच पा रही थी, कई लोगों ने कुंए में कूदकर जान बचाने का प्रयास किया, लेकिन वहां भी तो मौत ही थी, 120 लोगों ने जान गंवाई 10 मिनिट तक 90 सैनिकों ने 1650 राउण्ड गोलियां चलाई, फिर चले गये और पीछे छोड़ गए मौत का सन्नाटा जहां कराहते लोग थे जो तड़प रहे थे, ऐसे में सांध्य, रात में परिवर्तित होने लगी, पास ही रहने वाली एक महिला रतनदेवी वहां आई जो अपने पति के शव को खोज रही थी, वहां कुछ और लोग भी अपने परिजनों को तलाश रहे थे| लेकिन अब रात के 8:00 बज जाने से कफ्यू लग गया, कोई उसकी सहायता को अगली सुबह तक नहीं आ सका, घायल लोग पानी के लिए तड़प रहे थे, ऐसे में कौन किसे पानी पिलाता, सुबह हुई उसके कुछ पड़ोसी आये एक खटिया लेकर तब रतनदेवी अपने पति के शव को ले जा सकी।
ऐसे में एक बच्चे ऊधम सिंह ने, रक्त से सनी मिट्टी हाथ में लेकर यह संकल्प लिया कि अब इस नृशंस हत्याकाण्ड का बदला लेना ही उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य होगा। जनाक्रोश के आगे झुककर लगभग 5 महीने बाद सरकार ने इस काण्ड की जांच के लिये हंटर कमेटी बनाई, जिसने जनरल डायर को न दोषी माना न दण्डित किया।
कहा जाता है कि 10 मिनट मे 1650 राउंड गोलियां चली थीं। डायर तब जाकर रुका जब उसके सैनिकों की गोलियां खत्म हो गईं। इस घटना में तकरीबन 1000 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 1500 से ज्यादा घायल हुए थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार मरने वाले लोगों की संख्या 379 और घायल लोगों की संख्या 1200 बताती है। सर बेलेन्टाइन शिटोल के अनुसार भारत में ब्रिटिश राज का यह सबसे काला दिन था। ब्रिटिश नॅशसता के विरोध में जहां गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने सर नाईट हुड की उपाधि को लौटाया, वहीं गांधीजी ने जुलू विद्रोह के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही के दौरान, जो मानवीय सेवी की थी, उस संदर्भ में मिले तमगों को लौटा दिया।